Bhasha aur Boli me kya antar hai – दोस्तों भारत विविधताओं का देश है. यहां अलग-अलग हिस्से में आपको चीजें बदली दिखाई देंगी. कुछ किलोमीटर की दूरी पर ही आपको रहने और बोलने का तरीका बदला दिखाई देगा. ऐसी ही एक चीज भी अलग-अलग हो जाती है वह है बोली. लेकिन उस अलगाव में एक चीज जो लंबे दूरी तक एक ही रहती है. वह है भाषा.
अब आपको एक बात को लेकर सवाल पैदा हो सकता है. भाषा और बोली में क्या अंतर है. क्या वह अंतर बहुत बड़ा है. क्या यह जानना बहुत आवश्यक है. तो इसका जवाब है हाँ. तो आईए जानते हैं. Bhasha aur Boli me kya antar hai. इस अंतर को जानने के लिए इस आर्टिकल को अंत तक पढ़े.
भाषा और बोली – Bhasha aur Boli me kya antar hai
भाषा और बोली एक दूसरे के अंग हैं. जिसमें भाषा मुखिया और बोली उसके सदस्य हैं. सरल तरीके से अगर कहा जाए. अगर भाषा और बोली एक परिवार है. तो भाषा उस परिवार का मुखिया है. और अलग-अलग बोलियां उस परिवार के सदस्य हैं. इसीलिए बोली को उपभाषा भी कहा जाता है.
बोली क्या है (Boli Kya Hai)
ऊपर आपने Bhasha aur Boli के अंतर को बेसिक तौर पर समझ लिया होगा. यह आपने भी गौर किया होगा. अगर आप घूमने के शौकीन हैं. तो इसे और आसानी से समझ सकते हैं. किसी एक भाषा की एक बोली दूसरी बोली से अलग होते हुए भी इतनी अलग नहीं होती है कि दूसरी बोली समझ ना आए.
बोली को समझते हैं
असल में घर, गांव या समाज जैसे छोटे-छोटे स्तर पर बोलने का स्थानीय तरीका बोली कहलाता है. इसका दायरा बहुत छोटा होता है. यह कुछ किलोमीटर में ही बदल सकता है. बोली भाषा का सबसे छोटा स्वरूप होता है. यह भाषा की एक इकाई होती है. जिसे स्थानीय लोग सिर्फ बोल सकते हैं. इसे लिखना संभव नहीं होता है. बोली भले ही बोलने के तरीके का एक छोटा हिस्सा हो. लेकिन यह विशिष्ट पहचान रखती है.
बोली के उदाहरण (Boli Ke Udaharan)
अगर बोली के उदाहरण के तौर पर समझना चाहते हैं. तो इसके कई उदाहरण हैं.
- पहला उदाहरण तो आप जिस गांव से संबंध रखते हैं, आपके गांव के बोलने का तरीका है.
- इसके अलावा इसके कई अन्य उदाहरण अवधि, ब्रज और खड़ी जैसी बोलियां हैं.
ये सभी लोकप्रिय बोलियाँ हैं.
भाषा क्या है ? Bhasha Kya Hai?
बात अगर भाषा की की जाए. तो इसे बोलियां का व्यवस्थित रूप कहा जा सकता है. व्यक्त करने के इस माध्यम को न सिर्फ बोल सकते हैं. बल्कि भाषा को लिखा भी जा सकता है. भाषा की अपनी लिपि होती है.भाषा का अपना व्याकरण होता है. और उसके अपने नियम होते हैं.
भाषा का क्षेत्र व्यापक होता है
यह बहुत व्यापक क्षेत्र को कवर करता है. इसका मतलब है. भाषा का क्षेत्र बहुत बड़ा होता है. जैसे यह आर्टिकल आप हिंदी भाषा में पढ़ रहे हैं. तो हिंदी भाषी लोगों का क्षेत्र बहुत बड़ा है. इसमें एकरूपता पाई जाती है. आपने देखा होगा कि ऐसा नहीं होता है कि बिहार की हिंदी अलग होती है. और मध्य प्रदेश की हिंदी अलग होती है.
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Bhasha aur Boli me kya antar hai
अगर आप Bhasha aur Boli me kya antar hai. इसे स्पष्ट तौर पर समझना चाहते हैं तो समझिए कि बोली हमारे साधारण बोलचाल का तरीका होता है. लेकिन इसे लिखा नहीं जा सकता है. इसे सिर्फ बोला ही जा सकता है. बोली के माध्यम से शिक्षा नहीं ग्रहण की जा सकती है.
भाषा की होती है अपनी शैली
भाषा को लिखने की अपनी शैली होती है जिसे लिपि कहते हैं. लेकिन बोली कि अपनी कोई लिपि नहीं होती है. भाषा का क्षेत्र बहुत बड़ा होता है. लेकिन बोली का क्षेत्र बहुत छोटा होता है. ऐसा संभव है कि एक भाषा वाले क्षेत्र में सैकड़ो अलग-अलग बोलियां बोली जाती होगी. भाषा का एक विकसित व्याकरण होता है. लेकिन बोली का कोई नियम नहीं होता है.
अक्सर साहित्य का कार्य जैसे कविता कहानी इत्यादि लिखना भाषा में किया जाता है. इसे बोली में कर पाना संभव नहीं है. लेकिन अपवाद के तौर पर कभी-कभी प्रतिभा के धनी कुछ लोग आते हैं. जो उत्कृष्ट रचनाएं कर जाते हैं. विद्यापति के रचे गए पद मैथिली में रचे गए हैं. रामचरितमानस अवधि में लिखी गई है. और ये दोनों बोलियाँ हैं.
लोककथाएँ बोली में पाई जाती है
वही आपने जो लोक कथाएं या लोकगीत सुनी होगी वह बोलियों में पाई जाती हैं. जिसे आपने कभी पढ़ी नहीं होगी बल्कि सुनी ही होगी. तो लोक कथाएँ और लोकगीत बोली के माध्यम से कहीं जाती हैं.
अधिकतर लोगों की मातृभाषा है बोली
सबसे खूबसूरत बात यह है कि सामान्य तौर पर अधिकतर लोगों की मातृभाषा कोई भाषा नहीं बल्कि बोली ही होती है. जो हम अपने घरों में बोलते हैं. इसका कारण है कि भारत गाँव प्रधान देश हैं. यहाँ गाँवों के घरों में भाषा नहीं बोली ही बोली जाती है.
निष्कर्ष – आशा करते हैं कि Bhasha aur Boli me kya antar hai. इसे अप बेहतर तरीके से समझ गए होंगे. आप अपनी किसी भी जिज्ञासा को कमेंट में लिख सकते हैं. हम आपकी समस्या का समाधान करने का प्रयास करेंगे.