कितने चौराहे उपन्यास का सारांश लिखिए – कितने चौराहे उपन्यास लेखक फणीश्वर नाथ रेणु की एक रचना है. कहा जाता है कि इस उपन्यास के लेखन में लेखक फणीश्वर नाथ रेणु जी ने अपने निजी जीवन की कई घटनाओं को भी शब्दों में पिरोया है.
इस आर्टिकल में कितने चौराहे उपन्यास का सारांश लिखिए प्रश्न के उत्तर में व्यवस्थित तरीके से पूरा सारांश बताया जाएगा. इसके लिए इस आर्टिकल को अंत तक पूरा पढ़ना आवश्यक है.
कितने चौराहे उपन्यास का सारांश लिखिए
कितने चौराहे की पृष्ठभूमि – लेखक फणीश्वर नाथ रेणु द्वारा रचित यह उपन्यास उनके द्वारा अब तक प्रकाशित उपन्यासों के क्रम में पांचवा उपन्यास है. और आखिरी आंचलिक उपन्यास भी. इस उपन्यास की पृष्ठभूमि में अगर समय सीमा की बात की जाए तो वर्ष 1933-34 से लेकर 1965 तक की भारतीय राजनीति को बहुत सरल सहज तरीके से जीवंत करते हुए उसे उतारा है. इस उपन्यास की पृष्ठभूमि में मुख्य तौर पर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम है.
कथावस्तु
इस उपन्यास का मुख्य पात्र मनमोहन एक होनहार बच्चा होता है. जिसके पिता किसान होते हैं. वह सातवीं कक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद गांव के स्कूल से अररिया शहर पढ़ने जाता है. शुरुआत में उसे नई जगह, नए लोग के साथ तालमेल बिठाने में दिक्कत होती है. लेकिन फिर नए लोगों से जुड़ता है. शहर में उसका परिचय कुछ नए लोगों से होता है. वैसे लोग जो राजनीति के प्रति अत्यधिक सजक होते हैं. और राष्ट्रीयता की आग उनके अंदर लग चुकी होती है.
वहीं दूसरी तरफ वह मुख्य पात्र जिसका नाम मनमोहन है जिनके यहां रहता है. वे बहुत ही स्वार्थी किस्म के व्यक्ति होते हैं. लेखक ने बड़ी ही खूबसूरती से स्वार्थ और राष्ट्रीयता की भावना उनके अंदर किस तरह से विकसित होती है उसके प्रभाव को दर्शाया है. धीरे-धीरे यह आज उसे मुख्य पात्र के अंदर भी लगती है और उसकी ही कहानी बयां की गई है.
इस उपन्यास के मुख्य पात्र के जीवन में कितने ही चोराहे आते हैं. लेकिन उन सब को पार करता हुआ वह आगे बढ़ता है. उसके रास्ते पर यौन आकर्षण का चौराहा हो या अन्य घटनाएं उसके लिए वह तटस्थ भाव से खुद को रखते हुए आगे बढ़ता है. वह अपना संपूर्ण जीवन दस और देश को देना चाहता है उसका सपना होता है देश के लिए मर मिटने का. लेकिन जब वास्तव में उसे अपने भटकाव को रोकना होता है उस समय वह चूक जाता है. वह अपनी राष्ट्रभक्ति की जिम्मेदारी से चूक जाता है.
दोस्ती
वह अपनी दोस्ती की अनकही वादों से चूक जाता है. वह अपने शहीद होने के सपने से चूक जाता है. वह भी अपनी ही कमजोरी के कारण, नीलू के कारण. फिर वह पश्चाताप की आग में जलता रहता है.और उस पश्चाताप की आग में थोड़ी बहुत राहत तब मिलती है. जब उसे पता चलता है कि सन 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध में उसका छोटा भाई शहीद हुआ है. उसी के शब्दों में – पांच पांच चिताओं की आग में एक युग से झुलसते हृदय पर चंदन लिप रहा है कोई!
लेकिन वह अपने सपने से चूक कर भी दूसरे तरीके से दस और देश का काम कर रहा होता है. वह स्वामी सच्चिदानंद बनकर इस कार्य को आगे बढ़ा रहा होता है.
यह उपन्यास आजादी के पहले और आजादी के बाद के ग्रामीण भारत और कस्बाई भारत की गतिविधियों को बयान करता है. इसमें लेखक ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को लेकर उस छात्र वर्ग के मनोभाव से कथा की शुरुआत की है. जिस ओर किसी लेखक का ध्यान नहीं गया था. इस उपन्यास के बाकी चरित्र भी मजबूती से इस कहानी को आगे बढ़ाते हैं. चाहे वह काका का पात्र हो या शरबतिया का, चाहे वह प्रियोदा हो या नीलिमा. सभी इस कथावस्तु के जरूरी पात्र लगते हैं. जो कहीं से भी जबरदस्ती डाले हुए नहीं लगते हैं. यह सभी मुख्य पात्र की जीवन यात्रा के महत्वपूर्ण अंग हैं.
विशेषताएं :
- इस उपन्यास को बहुत संक्षेप में लिखा गया है. लेकिन संक्षेप में भी मुख्य पात्र के बचपन से लेकर वृद्धा अवस्था की कहानी बताई गई है. पूरे उपन्यास का केंद्र मुख्य पात्र रानी मनमोहन है. सारी घटनाएं या तो उसके लिए होती है या उसके साथ होती हैं. एक तरह से देखा जाए तो कितने चौराहे मुख्य पात्र की स्मरण गाथा ही है. लेकिन फिर भी उन सारी घटनाओं में एकरूपता है जिस वजह से यह उपन्यास पाठक को अपने से जुड़े रखती है.
- इस उपन्यास के पृष्ठभूमि भले ही राजनीति है लेकिन यह उपन्यास कहीं से भी राजनैतिक नहीं लगती है. इस उपन्यास में प्रेम भी है लेकिन यह प्रेम मूलक भी नहीं लगती है. राजनीति अगर पृष्ठभूमि है तो प्रेम प्रेरणा मात्र है. इसे पूर्ण रूप से आंचलिक कहना भी सही नहीं होगा. कस्बाई परिवेश में रची गई यह एक अन-आंचलिक रचना है.
- लेखक फणीश्वरनाथ रेणु ने इस उपन्यास के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को लेकर उस आयु वर्ग की बात कही है. जिस ओर किसी अन्य लेखक का ध्यान गया ही नहीं.
- इसमें मुख्य पात्र के बचपन किशोरावस्था या युवावस्था का बड़ा ही सूक्ष्म और मनोवैज्ञानिक तरीके से चित्रण किया गया है.
स्वतंत्रता संग्राम
- इस उपन्यास को पढ़कर या कहीं से भी काल्पनिक लगता ही नहीं है. इसकी कथावस्तु बेहद ही वास्तविकता से भरी हुई है. स्वतंत्रता संग्राम को लेकर सन 1930 से 1935 के समय का प्रभाव लेखक के लेखनी में दिखता है. उन्होंने वैसे समय के छोटे-छोटे बालकों की प्रतिक्रिया बेहद यथार्थ रूप से लिखा है.
- बात अगर उपन्यास के कौतूहल या उत्सुकता की की जाए. तो यह कहीं से भी ढीली नहीं पड़ती है यह पाठक को कहीं से भी बोर नहीं करती है. इसमें विभिन्न व्यक्ति का चरित्र, विभिन्न घटनाएं पाठकों के मन में लगातार उत्सुकता बनाए रखती है.
- इस उपन्यास की सबसे बड़ी विशेषता मौलिकता है. शायद फणीश्वर नाथ रेणु ऐसे पहले लेखक हैं. जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में विद्यार्थियों को चित्रित करते हुए एक हृदय स्पर्शी उपन्यास लिखा है.
- इस उपन्यास में ना तो पारंपरिक प्रेम है, पारंपरिक यौन आकर्षण ना फूहड़ या रूमानी संवाद और ना बहुत ही आदर्श पूर्ण तरीके से कोई बड़ा उपदेश. इस उपन्यास का मुख्य पात्र अपनी कमजोरी को साथ लेकर चलता हुआ, जिंदगी के चौराहे को किस प्रकार पर लगाता है. इसी का सहज और यथार्थ चित्रण इसमें किया गया है.
- इस उपन्यास की कथावस्तु समसामयिक घटना पर आधारित है. यही कारण है कि इसे ऐतिहासिक उपन्यासों की गिनती में भी रखा जा सकता है. क्योंकि इस उपन्यास की पृष्ठभूमि ऐतिहासिक घटनाएं ही हैं.
लेखक फणीश्वर नाथ रेणु का संक्षिप्त परिचय
उपन्यास दो चौराहे लेखक के फणीश्वर नाथ रेणु का जन्म 4 मार्च 1921 को हुआ था. बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिंगना नमक गांव में इनका जन्म हुआ था. कहा जाता है कि यह 1942 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख सेनानी भी थे. यह जीवन भर दमन और शोषण के विरुद्ध संघर्षरत रहे. यही कारण है कि इनकी लेखनी में भी ये विषय प्रमुखता से दिखते हैं.
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लेखक फणीश्वर नाथ रेणु की प्रमुख रचनाएँ
बात अगर इनके प्रमुख रचनाओं की की जाए तो इनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं :
- मैला आंचल
- ठुमरी
- अग्निखोर
- समय की शिला पर
- प्रतिनिधि कहानियां
- एक श्रावणी दोपहरी में
- अच्छे आदमी
इसके अलावा भी इनकी अनेकों कृतियां हैं, जो अलग-अलग विधा में है.
निष्कर्ष – हमेशा करते हैं कि अगर पूरा आर्टिकल पढ़ा हो. तो आपको कितने चौराहे उपन्यास का सारांश लिखिए प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा. ऐसे ही जानकारी के लिए इस वेबसाइट से जुड़े रहे और किसी भी सवाल या सुझाव के लिए हमें कमेंट कर बताएं.