हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने electoral bond यानी चुनावी बांड स्क्रीम को रद्द कर दिया है. जिससे भारत की राजनीतिक पार्टियों में एक नई बहस छिड़ गई है. भाजपा पार्टी जिसकी केंद्र में सरकार है वह electoral bond scheme के पक्ष में अपने तर्क दे रहा है. वही विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने electoral bond scheme की कर्मियों को गिनाते हुए सुप्रीम कोर्ट के द्वारा इलेक्टरल बॉन्ड स्कीम को रद्द किए जाने के फैसले का स्वागत किया है.
तो आईए जानते हैं सबसे पहले electoral bond kya hai. आखिर सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को रद्द किए जाने से मामला इतना गर्म क्यों है?
Electoral bond kya hai
इलेक्टरल बॉन्ड क्या है यह जानने से पहले हमें यह जानना है चाहिए कि आखिर यह मामला अचानक इतना गर्म क्यों है. तो इस मामले के गर्म होने के पीछे का कारण हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाया गया एक फैसला है. जिसकी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टरल बॉन्ड पर रोक लगा दी है.
What is electoral bond scheme
वर्ष 2017 में भारत सरकार के द्वारा electoral bond scheme की घोषणा की गई थी और इस स्कीम को सरकार के द्वारा 29 जनवरी 2018 को कानूनी रूप से लागू कर दिया गया था. Electoral bond असल में राजनीतिक पार्टियों द्वारा चंदा लेने का एक माध्यम है. यानी यह एक वित्तीय तरीका है जिसके माध्यम से राजनीतिक पार्टियां चंदा जुटा सकती है. चुनावी बोंड एक तरह के वचन पत्र की तरह होता है. जिसे भारत का कोई भी नागरिक या यहां की कोई भी कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की शाखाओं से इसे खरीद सकता है. चुनावी बोंड की शुरुआत हजार रुपए से होती है जो ₹10000, एक लाख, 10 लाख रुपए और एक करोड रुपए तक के हो सकते हैं. जिसे खरीद कर कोई भी व्यक्ति या कंपनी अपने पसंद के राजनीतिक पार्टी को दान कर सकता है और इस माध्यम में उसकी पहचान गुप्त रहती है.
Electoral bond की वैधता
बात अगर Electoral bond के अवधि की की जाए तो इसकी अवधि 15 दिन की होती है. जिसके दौरान कोई भी व्यक्ति इसे खरीद कर 15 दिन के अंदर अपने किसी भी पसंदीदा राजनीतिक पार्टी को दान कर सकता है. लेकिन इसे दान पाने वाले पार्टी के लिए यह आवश्यक है कि लोकसभा या विधानसभा के पिछले चुनाव में उनको मिले वोटो का प्रतिशत कुल वोटो के प्रतिशत का कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल हो.
What is electoral bond scheme
Chunavi bond स्कीम के साथ तत्कालीन केंद्र सरकार की यह सोच थी कि इसके माध्यम से काले धन पर अंकुश लगाया जाए. क्योंकि इसमें एसबीआई के माध्यम से बॉन्ड जारी किए जाते थे. इससे यह एक तरह से काले धन पर अंकुश लगाने की मंशा थी.
यह पोस्ट भी पढ़े: साबुन का बुलबुला कुछ समय बाद फट जाता है कारण है | Sabun ka bulbula kuch samay baad fat jata hai karan hai
इसे एसबीआई से खरीदा जा सकता था और इस योजना के तहत यह जनवरी अप्रैल जुलाई और अक्टूबर के महीने में 10 दिन की अवधि के लिए उपलब्ध कराए जाते थे. जिस दौरान इसे खरीदा जा सके और इसे आसन तरीके से खरीद कर व्यक्ति या कंपनी किसी भी राजनीतिक पार्टी को डोनेट कर सके. इसके बाद राजनीतिक पार्टी को इसे कैश में कन्वर्ट करवाना होता था. कैश करने के लिए पार्टी के वेरीफाइड अकाउंट का उपयोग किया जाता था और इस तरह से चंदे के रूप में काले धन के प्रयोग पर शत प्रतिशत अंकुश लगाने की योजना बनाई गई थी.
कब और क्यों की गई थी electoral bond की शुरुआत
Chunavi bond की शुरुआत 2017 में केंद्र सरकार के द्वारा की गई थी. जिसे 29 जनवरी 2018 को कानूनी रूप से लागू किया गया था. इसके जरिए राजनीतिक दल डोनेशन हासिल करते थे और इसके पीछे इसको लागू करने के पीछे केंद्र सरकार की यही सोच थी कि इलेक्टोरल बांड के जरिए काले धन पर अंकुश लगाया जाएगा. और चुनाव में डोनेशन के तौर पर मिलने वाली राशि का पारदर्शी तरीके से उसका हिसाब किताब भी रखा जा सकेगा.
Supreme court on electoral bond
लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को झटका देते हुए electoral bond scheme को रद्द करने का फैसला सुनाया है. Electoral bond scheme को रद्द करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा -” काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है. Electoral bond scheme सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है. और राजनीतिक दलों के द्वारा फंडिंग की जानकारी उजागर न करना उद्देश्य के विपरीत है. सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द करने का फैसला सुनाया है.
अपने फैसले में कोर्ट ने यह निर्देश भी जारी किया है कि एसबीआई को electoral bond के अब तक के खरीदारों की जानकारी 31 मार्च तक चुनाव आयोग को दें और साथी चुनाव आयोग को यह निर्देश दिया है कि वह 13 अप्रैल तक अपनी वेबसाइट पर उस जानकारी को साझा करें.
[…] होना चाहिए कि इसके निर्माण में लगभग 980 करोड रुपए खर्च हुए […]